कल्कि: अन्त का प्रारंभ। - भाग 1 Praveen Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कल्कि: अन्त का प्रारंभ। - भाग 1

"कलकी" इस नाम से कलयुग के बहुत से मनुष्य परिचित होंगे। पुराणों के अनुसार कलकी प्रभु श्री विष्णु का अंतिम अवतार बताया गया गया है, जिसमे प्रभु श्री विष्णु मनुष्य योनि में जन्म लेकर कलयुग का समापन करेंगे।
उस समय पर पाप अपनी चरण सीमा पर होगा और लगातार अपने अंत की बढ़ता जा रहा होगा।
उस समय में पाप ही पुण्य, बुराई ही अच्छाई, अधर्म ही धर्म, हिंसा ही अहिंसा का रूप ले चुके होंगे।
सभी प्राणी अपने स्वार्थ के लिए किसी भी जीव को हानि करने के लिए एक क्षण भी विचार नही करेंगे।
मनुष्य भोग विलास और लालच में इतना डूब चुका की वह जीवन और मृत्यु के चक्र को भूल जायेगा।
पाप करना, नरसंहार करना, बलात्कार करना, निर्बलों पर अत्याचार करना ये सब मानवीय प्रवत्तिया बन चुकी होगी।
मनुष्य की यह प्रवत्ति कलि प्रवत्ति है।
"कलि" यह एक राक्षस का नाम है।
पुराणों के अनुसार द्वापर युग में प्रभु श्री कृष्ण के समाधि लेने के पश्चात द्वारका नगरी जलविहीन हो गई और उसी के साथ द्वापर युग का अंत भी।
कलयुग का आरंभ राक्षस कलि के आगमन से मना जाता है।
राक्षस कलि में लोगो के मस्तिष्क को अपने वश में करने की क्षमता थी, जिससे वह मनुष्य को गलत व अनुचित कार्यों की ओर अग्रसर करता।
राक्षस कलि का अस्तित्व केवल मनुष्य के मस्तिष्क में था, जो सम्पूर्ण मानव जीवन को विनाश को और अग्रसर करने के लिए बहुतायत था।
आज मनुष्य ने अपना विकास इतना कर लिया है कि अब मनुष्य किसी जीव, जन्तु या वस्तु से नही डरता अपितु खुद मनुष्य ही मनुष्य से डरता है।
आज विज्ञान के बल पर मनुष्य ने अपनी सारी सुविधा की वस्तुओ का निर्माण किया है, मगर ये सुविधाएं ही शायद उसकी सबसे बड़ी दुविधा बनने वाली थी।
ये मशीनें जिनका उपयोग आज मानव कर रहा है कल वो मशीनें मानव को अपने वश में करके उसका उपयोग करेगी। पृथ्वी के विनाश का एक प्रमुख कारण ये मशीनें भी बनने वाली है।
मनुष्य अपने दैनिक कार्यों के इतना विलीन हो चुका था कि वह प्रकृति के चक्र का महत्व भूल गया था।
मनुष्य से प्रकृति की रक्षा एवं एक नई प्रकृति के निर्माण हेतु प्रभु श्री कलकी का जन्म हुआ।
भगवान का जन्म का हुआ तो शैतान का जन्म होना भी उचित है।
भगवान और शैतान दोनो का ही जन्म मनुष्य योनि में हुआ था अब उनके द्वारा किए गए कार्य एवम् उनकी सोच यह निर्धारित करेगी की कौन भगवान है और कौन शैतान।
दोनो का ही जन्म साधारण मनुष्य की बुद्धि लिए हुए हुआ था। दोनो का पालन पोषण भी मनुष्य द्वारा ही किया गया था।

कलकी अवतार की प्रतीक्षा छह चिरंजीवी कर रहे थे जो क्रमशः त्रेता, द्वापर युग से ही मृत्यु लोक पर निवास कर रहे है।
जिनमे श्री हनुमान जी, श्री परशुराम जी, श्री विभीषण जी, श्री अश्वधामा जी, श्री वेद व्यास और श्री महाबली बलि।
परंतु सबसे बेसब्री से प्रतीक्षा श्री अश्वाधामा को थी।

1. प्रतिशोध की प्रतीक्षा

द्वापर युग में महाभारत युद्ध के अंत समय में एक रात अश्वधामा ने पांडवों के सभी नवजीवित नवजात शिशुओ की हत्या कर दी और पांडवों के कुल का सर्वनाश कर दिया। अश्वधामा का यह कार्य करने का कारण अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेना था जो पांडवों द्वारा छल पूर्वक किया गया था।
महाभारत युद्ध के दौरान जब श्री द्रोणाचार्य किसी से भी परास्त नहीं हो रहे थे, तब उस समय श्री कृष्ण के कहने पर महाराज युधिष्ठिर ने बलवान भीम के द्वारा अपनी सेना के एक हाथी जिसका नाम अश्वधामा था की हत्या कर दी और द्रोणाचार्य के सामने जा कर जोर जोर से चिल्लाने लगे
"हमने अश्वधामा को मार दिया, हमने अश्वधामा को मार दिया।"
युधिष्ठिर के इन वचनों को सुन को द्रोणाचार्य का शरीर शिथिल हो जाता है और उसी समय अर्जुन अपने बाण से द्रोणाचार्य का सिर उनके धड़ से अलग कर देता है।
पांडवों के कुल का सर्वनाश करने के पश्चात अश्वधामा कुरुक्षेत्र में जोर जोर से हसने लगता है, कुछ समय पश्चात अश्वधामा को ज्ञात होता ही कि उनमें से एक अभी भी जीवित था, जो अभिमन्यु की पत्नी की कोख में सांसे ले रहा था।
तो उसने अपने धनुष में ब्रह्मास्त्र का आह्वान किया और उसकी दिशा अभिमन्यु की पत्नी की कोख में पल रहे शिशु की ओर कर दी।
अर्जुन को इस बात का पता लगने पर उसने अपने पौत्र की रक्षा के लिए अपने धनुष में ब्रह्मास्त्र का आह्वान किया और अश्वधामा की ओर दिशा कर दी। अब दोनो धनुर्धर धनुष में बम्हास्त्र लिए एक दूसरे के सामने खड़े थे।
अब इससे पहले की दोनो अपने धनुष से ब्रह्मास्त्र मुक्त करे दोनो के बीच सप्तऋषि और देवता गण आकार खडे हो जाते है और कहते है कि अगर तुमने अपने धनुष से ब्रह्मास्त्र मुक्त किया तो क्षण भर में संपूर्ण पृथ्वी का नाश हो जायेगा।
इतना कहकर स्प्तऋषि और सभी देवता गण दोनो से प्रार्थना करते है की अपने अस्त्र को वापस ले ले।
अर्जुन ऋषियों की बात का मान रखते हुए अपना अस्त्र वापस ले लेते हैं परंतु अश्वधामा को अपना अस्त्र वापस लेना नही आता था ओर उसने बिना कुछ सोचे समझे ब्रह्मास्त्र अभिमन्यु के पुत्र की ओर चला दिया।
तभी श्री कृष्ण सामने आते है और ब्रह्मास्त्र को शांत कर देते है।
तत्पश्चात श्री कृष्ण अश्वधामा के समीप जाकर बलपूर्वक उसके माथे से मणि निकाल लेते है, (अश्वधामा के माथे में एक नागमणि जड़ी हुई थी जिससे वह अमर हो चुका था।)
और उसे श्राप देते है कि "हे अश्वधामा तुमने एक अजन्मे शिशु को उसकी माता की कोख में ही मारने का प्रयत्न किया मैं तुम्हे श्राप देता हु तुम जब तक पृथ्वी है तब तक इस मृत्यु लोक पर इस माथे पर लगे बहते घाव को लिए जीवित रहोगे तुम्हे कभी मृत्यु नही आयेगी।"
उसी समय से अश्वधामा अपने बहते हुए घाव को लिए मृत्युलोक में भ्रमण कर रहे है और प्रतिशोध की अग्नि लिए कलकी अवतार की प्रतीक्षा कर रहे है।


2. अश्वधामा एक आधुनिक शैतान

अश्वधामा ने इतने वर्षो में अपनी बुद्धि और बल को कई गुना बड़ा लिया था।
अब वह द्वापर युग की बुद्धि और शक्ति के साथ कलयुग की आधुनिकता का प्रयोग भी करना सीख गया था।
अश्वधामा ने आधुनिक उपकरणों और अपनी द्वापर युग की शक्तियों से स्वयं को इतना शक्तिशाली बना लिया था कि उससे द्वंद में विजय होना लगभग असम्भव था।
उसने कल युग में बहुत से शक्तिशाली और बुद्धिजीवी मनुष्य साथ मिल कर कई संगठन बनाये थे जिसमें हर कोई इस बात से अनजान था कि वह द्वापर युग का श्रापित पुरुष अश्वधामा था।
अश्वधामा का शरीर लगभग 8 फीट लंबा और लोह निर्मित था। अश्वधामा ने अपने बहते घाव के लिए एक ऐसे आधुनिक मुकुट का निर्माण किया था जो हर पल उसका रक्त सोखता रहता था और शुद्ध कर वापस उसे उसके शरीर में प्रवेश करवा देता था।
उस मुकुट के कारण किसी को भी अश्वधामा का घाव दिखाई नही देता था। उस मुकुट के ऊपरी सतह पर उसने बालों की परत लगाई थी जिससे वह दिखाई नही देता था।
अश्वधामा का संगठन आधुनिक श्रस्तो से परिपूर्ण था।
उसने ऐसे संगठन पृथ्वी के विभिन्न भागों में बनाए हुए थे
परंतु वह इन संगठनों के किसी भी व्यक्ति के सामने साक्षात नही गया था न ही उनमें से किसी के संपर्क में रहता,
अगर किसी से संपर्क करने की आवश्कता होती तो वो स्वयं करता। उसने अपने इन संगठनों को चलाने के लिए हर संगठन का एक प्रतिनिधि बनाया हुआ था।
वह प्रायः अपने संगठन को मानव जाति को क्षति पहुंचाने की आज्ञा देता और वो पृथ्वी के विभिन्न भागों में अपने इस कार्य को पूर्ण करते।
अश्वधामा अब उस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था कि कब श्री कृष्ण वापस आए और वह अपने प्रतिशोध की ज्वाला शांत करे।

3. चिरंजीवी हनुमान.

कलयुग में जन्म लेने वाले प्रभु श्री विष्णु, जिनेक अवतार का नाम कल्कि रहेगा, जो एक मनुष्य योनि में ही जन्म लेंगे तो उनकी शक्तियों का एक मानव जैसे ही साधारण होना स्वाभाविक बात था।
मगर प्रश्न ये था की अगर कल्कि के पास कोई दैविक शक्तियां नही हुई तो, वह कैसे इतनी शक्तियों का सामना करेंगे।
संभवतः यही कारण था की श्री हनुमान जी अब तक पृथ्वी पर निवास कर रहे थे।
हनुमान जी भी अभी तक अपने प्रभु की प्रतिक्षा कर रहे थे।
त्रेता युग में संपूर्ण महासागर को अपनी एक छलांग में पार करने वाले चिरंजीवी हनुमान के बल और बुद्धि का शायद ही कोई माप होगा।
महाभारत के समय जब युद्ध का अंत हुआ तो श्री कृष्ण ने ध्वजा के रूप में अर्जुन के रथ पर विराजमान श्री हनुमान जी को नीचे उतरने का आदेश दिया।
हनुमान जी के नीचे आते ही रथ के टुकड़े टुकड़े हो जाते है और वह देखते ही देखते मिट्टी बन जाता है।
अर्जुन इसे समझ गए थे की उनके सुरक्षित रहने का सबसे बड़ा कारण यही था।
यही कारण था जिसके परिणाम स्वरूप अर्जुन को युद्ध में अपने प्रत्येक प्रतिद्वंदी से विजय प्राप्त हुई।
हनुमान जी अपनी साधना, एकाग्रता एवं ध्यान से अत्यंत शक्तिशाली व बुद्धिमान थे।
त्रेता युग से तो कल युग तक अपनी असीम और अनंत शक्तियों को समेटे हुए, हर युग में अपने प्रभु की प्रतीक्षा करते हुए, श्री हनुमान जी किसी अज्ञात स्थान पर साधना में लीन है।

4. श्री परशुराम.

ब्राम्हणों पर हो रहे अत्याचार को देख अपनी साधना और ध्यान का त्याग कर अपने फर्श से संपूर्ण पृथ्वी को क्षत्रिय के अत्याचार से मुक्त कराने वाले श्री हरि विष्णु के अवतार श्री परशुराम अब तक अपने जीवन से मुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे थे।
कलयुग के समय में यह देखना की प्रभु विष्णु के दोनो अवतार कल्कि और परशुराम साथ में खड़े रहेंगे अत्यंत दुर्लभ क्षण होगा।

5. लंकापति राजा विभीषण.

रामायण के अंत मैं श्री राम ने रावण का वध कर विभीषण को लंका का स्वामी बनाया और चिरंजीवी होने का वरदान दिया।
समय के साथ मनुष्य की सोच भी बड़ने और बिगड़ने लगी।
विभीषण से कल युग के मनुष्य का यह आचरण देखा नही गया और एक दिन विभीषण बिना किसी को बताए अपने राजभवन से लुप्त हो गए, उसके पश्चात कभी उन्हें किसी ने नहीं देखा।

6. महर्षि वेदव्यास और राजा बलि.

महर्षि वेदव्यास, प्रसिद्ध महाग्रंथ महाभारत के रचयिता, अपनी असामान्य बुद्धि और अनंत ज्ञान के साथ कई विज्ञानिक प्रयोग द्वारा अनेक अस्त्र और शस्त्रों का निर्माण किया।
मनुष्य की अवचेतन बुद्धि और बल को चेतन और नियंत्रण करने के अनेक सिद्धांत और शारीरिक क्रियाएं को उजागर किया और सभी रहस्य को अपने द्वारा रचित ग्रंथों में एकग्रित किया।
उनके द्वारा खोजे गए ये सिद्धांत किसी भी साधारण मनुष्य को असाधारण शक्ति में बदल सकते थे।
जल, अग्नि, वायु , भूमी और गगन को नियंत्रण करने में सक्षम ये सिद्धांत परिष्कृत संस्कृत भाषा में लिखे गए थे।
जिनका अर्थ समझना शायद इतना आसान नहीं था।
महर्षि वेद व्यास ने यह रहस्यमय ग्रंथ राजा बलि के पास पाताल लोक में सुरक्षित रखे थे।
राजा बलि एक समय में तीनों लोको के राजा थे।
व्यवहार से वह एक दानी व्यक्ति थी।
एक दिन उन्होंने अपने राजभवन में यज्ञ का आवाहन किया।
उसी दिन प्रभु श्री नारायण वामन अवतार लेकर उनके महल में आकर भिक्षा का आग्रह करते है।
राजा बलि वामन देवता से कहते है, "आपको क्या चाहिए वामन देवता।"
वामन देवता उनसे बस तीन पग भूमि का आग्रह करते है राजा बलि यह सोच कर की तीन पग भूमि में उनका क्या ही हो जायेगा उन्हें तीन पग भूमि देने का वचन देते है।
राजा बलि के वचन देते ही, वामन देव अपने शरीर का आकार बडाने लगते, वह अपने शरीर को इतना ज्यादा बड़ा लेते है की वह गगन से भी ऊपर चले जाते है।
तत्पश्चात पहला कदम आगे बढ़ते हुए संपूर्ण आकाश, देव लोक, इंद्र लोक और संपूर्ण आकाश गंगा माप देते है।
दूसरे कदम मैं संपूर्ण भू लोक माप देते है।
अब तीसरे कदम के लिए कोई जगह नहीं बचती।
तो राजा बलि उन्हें तीसरा कदम अपने सर पर रखने का आग्रह करते है।
जैसे ही वामन देवता अपना पैर राजा बलि के सर पर रखते हैं, वें पाताल लोक में चले जाते है।
राजा बलि की इस दीनता और दानी गुण से प्रसन्न होकर वामन देवता उन्हे पाताल लोक का राजा नियुक्त करके उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान देते है।